India Corporate Shutdown: पांच साल में बंद हुईं 2 लाख से अधिक निजी कंपनियां, कर्मचारियों के पुनर्वास पर नहीं बनी कोई योजना
नई दिल्ली। भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर की चमक-दमक और तेजी से बढ़ते स्टार्टअप इकोसिस्टम के बीच एक गंभीर तस्वीर सोमवार को संसद में सामने आई। सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि पिछले पांच वर्षों में देशभर में 2,04,268 निजी कंपनियां बंद हो चुकी हैं। यह संख्या न केवल आर्थिक उतार-चढ़ाव को दर्शाती है, बल्कि ‘शेल कंपनियों’ और निष्क्रिय संस्थाओं पर सरकार द्वारा चलाए गए व्यापक अभियान की ओर भी संकेत करती है।
2022-23 सबसे बड़ा ‘क्लीनअप’ वर्ष, रिकॉर्ड 83,452 कंपनियां बंद
कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने सदन में लिखित जवाब में बताया कि वर्ष 2022-23 कॉरपोरेट सेक्टर की सफाई के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण रहा, जब एक ही वर्ष में 83,452 कंपनियां बंद की गईं।
इसका मुख्य कारण मंत्रालय द्वारा निष्क्रिय और संदिग्ध कंपनियों को हटाने के लिए चलाया गया विशेष ‘स्ट्राइक-ऑफ अभियान’ था।
मंत्री द्वारा पेश किए गए आंकड़े:
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2022-23: 83,452 कंपनियां बंद
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2021-22: 64,054 कंपनियां बंद
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2020-21 (कोविड वर्ष): 15,216 कंपनियां बंद
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2023-24: 21,181 कंपनियां बंद
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2024-25 (वर्तमान वर्ष): अब तक 20,365 कंपनियां बंद
मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि कंपनियों के बंद होने के पीछे केवल घाटा या आर्थिक संकट ही कारण नहीं है।
इनमें मर्जर, अधियोग, विघटन और कंपनी अधिनियम 2013 के तहत रिकॉर्ड से हटाया जाना भी शामिल है।
रोजगार पर उठे सवाल, सरकार का साफ जवाब — “कोई योजना नहीं”
कंपनियों के बड़े पैमाने पर बंद होने ने रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी चिंता बढ़ाई है।
जब मंत्री से पूछा गया कि क्या बंद हुई कंपनियों के कर्मचारियों के पुनर्वास या रोजगार सुरक्षा के लिए कोई नीति तैयार की गई है, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा—
“सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।”
यह जवाब उन लाखों कर्मचारियों के लिए चिंताजनक है जो अप्रत्यक्ष रूप से इन बंद कंपनियों से प्रभावित हुए हैं।
‘शेल कंपनियां’ और मनी लॉन्ड्रिंग पर सरकार का फोकस
सदन में एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा ‘शेल कंपनियों’ का भी उठा।
मल्होत्रा ने बताया कि कंपनी अधिनियम में ‘शेल कंपनी’ शब्द परिभाषित नहीं है, लेकिन सरकार ऐसी कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए आक्रामक रुख अपना रही है।
उन्होंने कहा कि—
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ED, आयकर विभाग और MCA के बीच इंटर-एजेंसी समन्वय और मजबूत किया जा रहा है
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ताकि मनी लॉन्ड्रिंग या वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े मामलों में तेज कार्रवाई की जा सके
इसका मतलब है कि संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों के खिलाफ अब अधिक संगठित और संयुक्त कार्रवाई होगी।
विशेष टैक्स छूट पर नहीं, ‘सरलीकरण’ पर जोर
ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए विशेष टैक्स छूट की मांग पर सरकार ने नीति परिवर्तन का संकेत दिया है।
मंत्री ने स्पष्ट कहा कि सरकार की नीति अब प्रोत्साहन की बजाय टैक्स व्यवस्था के सरलीकरण पर केंद्रित है।
सरकार का लक्ष्य—
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टैक्स प्रणाली से छूट और कटौती कम करना,
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कॉरपोरेट टैक्स दरों में कमी,
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और व्यवस्था को अधिक पारदर्शी बनाना।
निष्कर्ष
पिछले पांच वर्षों में दो लाख से अधिक कंपनियों का बंद होना भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर की बदलती संरचना की ओर संकेत करता है। जहां एक ओर सरकार ‘शेल कंपनियों’ पर कठोर कार्रवाई कर रही है, वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों के पुनर्वास पर किसी नीति का न होना कई सवाल खड़े करता है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार कॉर्पोरेट नियमन और रोजगार सुरक्षा के बीच किस तरह संतुलन बनाती है।



