बिहार चुनाव 2025: ‘बदलाव की हुंकार’ पर भारी पड़ा एनडीए का बूथ मैनेजमेंट, एग्जिट पोल में दिखी सत्ता की वापसी की झलक
पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद आई शुरुआती रुझानों और एग्जिट पोल ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। जिस ‘बंपर वोटिंग’ को विपक्षी गठबंधन महागठबंधन ने ‘परिवर्तन की लहर’ माना था, वही अब एनडीए के लिए ‘साइलेंट समर्थन’ साबित होती दिख रही है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिरता और भाजपा के बूथ मैनेजमेंट ने मिलकर ‘एंटी-इंकम्बेंसी’ की लहर को ‘प्रो-इंकम्बेंसी’ में बदल दिया है।
‘बंपर वोटिंग का मिथक’ टूटा
देश में यह धारणा रही है कि अधिक मतदान सत्ता विरोध का संकेत होता है, लेकिन बिहार में यह मिथक टूटता नजर आ रहा है। दो चरणों में 65 से 70 प्रतिशत तक की रिकॉर्ड वोटिंग हुई, पर इसका फायदा एनडीए को मिलता दिखाई दे रहा है। एग्जिट पोल के रुझानों के अनुसार, नीतीश कुमार का “निश्चय फैक्टर” तेजस्वी यादव के “परिवर्तन जोश” पर भारी पड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह केवल लहर नहीं थी बल्कि अदृश्य बूथ प्रबंधन की जीत है, जिसने हर स्तर पर वोटिंग को नियंत्रित किया। भाजपा और जदयू ने अपने कोर वोटर्स को संगठित तरीके से बाहर निकालकर मतदान कराया।
एनडीए की रणनीति — प्रवासी बिहारी से साइलेंट महिला वोटर तक
एनडीए की सबसे बड़ी ताकत उसका बूथ मैनेजमेंट और संगठन रहा। गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने प्रवासी बिहारी वोटरों को गांव वापस लाने की मुहिम चलाई। वहीं, ग्रामीण इलाकों में महिला मतदाताओं के बीच सुरक्षा, योजनाओं की निरंतरता और स्थिरता का संदेश गूंजता रहा।
महिलाओं और बुजुर्गों का बड़ा तबका, जो कानून-व्यवस्था और कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी हैं, ने इस बार ‘स्थिरता’ को ‘परिवर्तन’ पर तरजीह दी। यही कारण रहा कि भारी मतदान के बावजूद सत्ता विरोधी लहर कमजोर पड़ गई।
‘तेजस्वी का जोश’ और ‘नीतीश का भरोसा’
तेजस्वी यादव ने युवाओं को रोजगार और बदलाव के वादे से आकर्षित किया, लेकिन अनुभव की कमी और संदेह की परत उनके अभियान पर भारी पड़ी। कई युवा मतदाताओं को उनके वादे “भावनात्मक तो लगे, पर भरोसेमंद नहीं”। इसके विपरीत, नीतीश कुमार की छवि ‘निश्चय नीतीश’ के रूप में सामने आई — जहां भावनाओं से अधिक स्थिरता और विश्वास ने काम किया।
सीमांचल का सियासी समीकरण
सीमांचल में मुस्लिम मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी ने महागठबंधन को उम्मीद दी, लेकिन यह एकजुटता एनडीए के पक्ष में गैर-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से टकरा गई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “एक समुदाय की एकजुटता ने दूसरे की गोलबंदी को और मजबूत किया”, जिससे महागठबंधन की उम्मीदों को झटका लगा।
बूथ के बाहर की ‘खामोशी’ में छिपा संदेश
पटना की गलियों में सन्नाटा है, लेकिन यह सन्नाटा बहुत कुछ कहता है। एक स्थानीय दुकानदार की बात में सच्चाई झलकती है —
“अरे साहब, हवा से सरकार बनत है? जनता अब खुदे मन बनावत है।”
यानी इस बार जनता ने अपने स्तर पर सोच-समझकर वोट किया है। यह ‘हवा’ नहीं, बल्कि ‘मैनेजमेंट’ और ‘सेटिंग’ का चुनाव था — जहां हर बूथ पर रणनीति तय थी।
अंतिम फैसला बाकी
14 नवंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद यह स्पष्ट होगा कि एग्जिट पोल की भविष्यवाणियां कितनी सटीक थीं। फिलहाल, बिहार की “बोलती खामोशी” ने इतना जरूर दिखा दिया है कि यहां का वोटर अब हवा से नहीं, अपनी ‘गणितीय समझ’ से सरकार बनाता है।



