Supreme Court News: हिरासत में हिंसा और मौत सिस्टम पर ‘धब्बा’, देश अब नहीं करेगा बर्दाश्त – सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में पुलिस हिरासत में हो रही हिंसा और मौतों पर गंभीर रुख अपनाते हुए मंगलवार को कहा कि ऐसी घटनाएं भारतीय न्याय-व्यवस्था पर एक “बड़ा दाग” हैं और देश अब इन्हें किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेगा। अदालत ने कहा कि हिरासत में मौतें एक सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य हैं और यह कानून-व्यवस्था के ढांचे पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को तय की है।
क्या है पूरा मामला?
शीर्ष अदालत देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों के काम नहीं करने तथा इनके अधूरे इंस्टॉलेशन से जुड़े मामले की स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में पिछले आठ महीनों में 11 हिरासत मौतों पर तीखी नाराजगी जताई।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की दो-न्यायाधीशों वाली पीठ ने टिप्पणी की,
“देश अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह सिस्टम पर धब्बा है। हिरासत में मौतें नहीं हो सकतीं।”
केंद्र सरकार से सख्त सवाल—“अदालत को हल्के में क्यों लिया जा रहा है?”
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वीकार किया कि हिरासत में मौत को कोई भी व्यक्ति उचित नहीं ठहरा सकता। लेकिन अदालत इस बात से नाराज हुई कि केंद्र सरकार ने अब तक इस मामले में अपनी अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं की है।
कोर्ट ने तीखा सवाल पूछा:
“केंद्र सरकार इस अदालत को हल्के में क्यों ले रही है?”
इसके बाद केंद्र ने तीन हफ्तों के भीतर हलफनामा दाखिल करने का वादा किया।
CCTV इंस्टॉलेशन पर धीमी प्रगति; कई राज्यों की कमी उजागर
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में आदेश दिया था कि सभी पुलिस थानों, सीबीआई, ईडी, एनआईए सहित अन्य केंद्रीय एजेंसियों के कार्यालयों में फुल कवरेज वाले CCTV कैमरे और रिकॉर्डिंग सिस्टम लगाए जाएं।
लेकिन सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि—
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अब तक सिर्फ 11 राज्यों ने ही अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है।
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कई राज्य और केंद्र के विभागों ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी है।
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तीन केंद्रीय एजेंसियों में CCTV लगा है, लेकिन बाकी अभी भी पीछे हैं।
मध्य प्रदेश की मॉडल की सराहना
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की प्रशंसा करते हुए कहा कि राज्य ने CCTV इंस्टॉलेशन और पुलिस स्टेशनों की निगरानी व्यवस्था में बेहतरीन कार्य किया है।
हर थाने और चौकी को जिला कंट्रोल रूम से लाइव जोड़ा गया है, जिसे कोर्ट ने काबिल-ए-तारीफ बताया।
अमेरिका मॉडल और ‘ओपन एयर प्रिजन’ की चर्चा
सुनवाई के दौरान अमेरिका की जेल प्रणाली का उदाहरण भी सामने आया, जहां—
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कई जगह CCTV की लाइव स्ट्रीमिंग होती है
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कुछ निजी जेलें भी संचालित होती हैं
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी जानकारी दी कि CSR फंड से निजी जेल बनाने का प्रस्ताव पहले भी आया था। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह पहले से ही ओपन एयर जेल मॉडल पर विचार कर रही है, जो जेलों में भीड़भाड़ और हिंसा जैसे मुद्दों को कम करने में मदद कर सकता है।
कोर्ट की कड़ी चेतावनी—“3 हफ्ते में रिपोर्ट दें, वरना अधिकारी होंगे तलब”
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र को निर्देश दिया है कि—
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तीन हफ्तों में हर हाल में अपनी रिपोर्ट दाखिल करें
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ऐसा न होने पर संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा
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केंद्रीय एजेंसियों में अनुपालन नहीं हुआ तो उनके निदेशकों को बुलाया जाएगा
अदालत ने मामले को अब 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया है और तब तक सभी पक्षों को अपनी-अपनी रिपोर्ट जमा करने के निर्देश दिए हैं।



