देहरादून: सुप्रीम कोर्ट ने मोरबी पुल हादसे की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की| इस दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल उठाये हैं। प्रधान न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा कि इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर करते हुए इस मामले की तत्काल सुनवाई की जाने की बात कही है।
बेंच ने पूछा कि हमें कागजात देर से मिले। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। अत्यावश्यकता क्या है? जिसके जवाब पे वकील ने कहा कि इस मामले में अत्यावश्यकता है क्योंकि देश में बहुत सारे पुराने ढांचे हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि मामले को प्राथमिकता से सुना जाए।
बता दें, तिवारी ने याचिका में कहा कि दुर्घटना सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और घोर विफलता को दर्शाती है। पिछले एक दशक में हमारे देश में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां कुप्रबंधन, कर्तव्य में चूक और रखरखाव की लापरवाही के कारण बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने के मामले सामने आए हैं जिन्हें टाला जा सकता था। राज्य की राजधानी गांधीनगर से लगभग 300 किमी दूर स्थित एक शताब्दी से अधिक पुराना पुल व्यापक मरम्मत और नवीनीकरण के बाद त्रासदी से पांच दिन पहले फिर से खुल गया था। 30 अक्टूबर को शाम करीब 6.30 बजे यह ढह गया।