नैनीताल: अब दहेज उत्पीड़न केस में पर्याप्त साक्ष्य होने पर ही पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकेगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 31 जुलाई 2023 को असफाक आलम बनाम झारखंड राज्य में आईपीसी की धारा 498 ए (दहेज उत्पीड़न निषेध कानून) के दुरुपयोग को रोकने के संबंध में दिए गए दिशानिर्देश पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पुलिस व मजिस्ट्रेट के लिए विस्तृत आदेश जारी किए हैं। इन निर्देशों के बाद अब पुलिस दहेज उत्पीड़न के आरोपी को बिना पर्याप्त साक्ष्य व जांच के गिरफ्तार नहीं करेगी।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अनुज संगल की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 498 ए का केस दर्ज होने के बाद पुलिस तब तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं करेगी, जब तक वह आवश्यक जांच कर गिरफ्तारी के लिए स्वयं संतुष्ट नहीं हो जाती। इस मामले में हाईकोर्ट ने 498 ए से जुड़े केस से जुड़े क्षेत्राधिकार वाले न्यायालयों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य वर्ष 2014 में दिए निर्देशों का पालन करना होगा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने असफाक आलम बनाम झारखंड राज्य के एक मामले में सुनवाई करते हुए विभिन्न हाईकोर्ट और राज्य पुलिस प्रमुखों के लिए अहम निर्देश जारी किया हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकतम सात साल की सजा वाले अपराधों में यांत्रिक तरीके से गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट और राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के पुलिस प्रमुखों (डीजीपी) को इस बाबत आवश्यक आदेश जारी करने को कहा है। आठ सप्ताह के भीतर इस निर्देशों का पालन करने कहा था। जिसपर उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को पहले सीआरपीसी की धारा 41 के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता को लेकर पूरी तरह संतुष्ट हो जाना चाहिए। मोहम्मद असफाक आलम के खिलाफ उसकी पत्नी ने वैवाहिक विवाद का मामला दर्ज कराया था। इसमें झारखंड हाईकोर्ट ने पति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।
अपील करने वाले पति ने अपने पक्ष में दलील दी कि गिरफ्तारी का प्रावधान होने का अर्थ यह नहीं है कि हर मामले में गिरफ्तारी जरूरी है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए मोहम्मद असफाक आलम को जमानत दे दी।साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के मामले में जमानत देते समय जारी किए गए अपने निर्देशों को फिर से बताया। ये निर्देश जारी करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी कोशिश यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस अधिकारी आरोपियों को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करें। साथ ही मजिस्ट्रेट लापरवाही से और मशीनी तरीके से हिरासत को अधिकृत न करें।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि विभिन्न हाईकोर्ट ऐसे अपराधों से निपटने वाले सत्र न्यायालयों और अन्य सभी आपराधिक न्यायालयों द्वारा पालन किए जाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करें। इसी तरह सभी राज्यों में पुलिस महानिदेशक यह सुनिश्चित करेंगे कि इन निर्देशों के संदर्भ में सख्त निर्देश जारी किए जाएं।पीठ ने कहा कि सभी राज्य सरकारों को अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश देना होगा कि अगर कोई मामला प्च्ब् की धारा 498-ए के तहत या दहेज उत्पीड़न के तहत दर्ज किया गया है तो पुलिस अधिकारी स्वतरू ही आरोपी की गिरफ्तारी नहीं करें। ऐसा तभी किया जाना चाहिए जब मामले को देख रहे अधिकारी गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में संतुष्ट हों। यह दिशा-निर्देश उन मामलों में भी लागू होंगे जिनमें अपराध की सजा सात साल या उससे कम होती है।