कड़वा सच…
पहाड़ के किसी भी लिखे पढ़े नौजवान के लिए खेती के बल पर गांव में टिका रहना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव हो रहा है…, खेती को लाभप्रद बनाने वाले पहले कदम चकबंदी की ओर सरकार एकदम उदासीन है।
पहाड़ का गरीब सरकारी कर्ज उतारने के लिए और कर्ज का सहारा ले रहा है जिसके लिए अधिकांश लोग सुबह खेतों की ओर जाने की बजाए बाजार व सरकारी दफ्तरों की ओर कूच कर जाते है और शाम को इनमे से अधिकांश पौवा गटककर ही घर पहुंचते है। इनके घर की जिम्मेदारियों की कमरतोड़ मेहनत महिलाओं के हिस्से है।
अब पहाड़ का विकास इस बात पर निर्भर है कि जल्दी से इन गांवों का आखिरी मकान खाली हो और बड़ बड़े धन्नासेठ इन्हें औने पौने दामों में खरीदकर इनमें पर्यटन विलेज विकसित करें।
तब यह विलेज आलवेदर रोड़, रेल और वायु मार्ग की जद में होंगे। यहां के युवा इन रिजोर्टों में छोटी मोटी नौकरियां करेंगे और पहाड़ी डांस कर देशी विदेशी पर्यटकों का मन बहलाएंगे।
तब धन्ना सेठों की मेहरबानियों पर पलने वाली सरकार इनके बल पर रोजगार के आंकड़े जारी कर इन्हें.समय समय पर..पर्वत पुत्र…के सम्मान से नवाजेगी।
अभी तक पहाड़ी प्रवासी होने का दंभ भरने वाले महानगरों के प्रवासियों की नई पीड़ियां जब अपने गांव के रिजोर्ट में कुछ दिनों लाखों रुपये देकर टिकेंगे तो वे हमारी पीढ़ी वालों के पित्र श्राद्ध में मंत्रों के बजाए मोटी मोटी गालियां देकर सम्मानित करेंगे, जो हमारी दिवंगत आत्माओं में चाबुक की तरह पड़ेंगी………..।
वरीष्ठ पत्रकार विजेंदर रावत की कलम से।
Photo – Harish Bhatt Gopeshwar