उतराखंड सरकार का विधायक निधि को पोने चार करोड़ करना,उत्तराखंड की राजनैतिक को ठेकेदारी के कमिशन बाजी की संस्कृति में धकेल देना है,जहॅां से कोई चेतना स्वर ना निकले और ना कोई विरोध की आवाज उठे,सत्तापक्ष आसानी से अपना शासन चलाता रहें। विधायक व सांसद निधि देने का मुख्य लक्ष्य ही यही है।
भारतीय संविधान ने कार्यपालिका,विधायिका व न्यायपालिका के कार्यों का विभाजन स्पष्ट किया है।विधायिका का कार्य ही विधेयक बनाना है तथा कार्यपालिका को इसको लागू करना है। लेकिन सरकार ने जनप्रतिनिधियों को भ्रष्ट करने के लिए कार्यपालिका का कार्य जनप्रतिनिधियों को खड़जा जैसा घटिया कार्य करने के लिए जिम्मेदारी दे दी है।जो भी निर्माण कार्य विधायक व सांसद निधि से होता है उसका 40 प्रतिशत भी वास्तविक रूप में निर्माण कार्य में नही लगता है,कही-कही तो स्थिति यह रहती 10 प्रतिशत भी योजना में नही खर्च होता है,अधिकांश बजट का बंदर बॉंट हो जाता है,कुछ जनप्रतिनिधि तो इस बजट का उपयोग इसलिए नही करते की कही वे बदनाम ना हो जाय।
सांसद व विधायक निधि वास्तविक रूप में अपने दल व केकार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करना है ,वास्तविक रूप में दल के रूप में कार्य करने पर निर्माण कार्य करने का ठेका देना है। ठेका भी वह कार्यकरता अधिक ले जाता है,जो चालक व नेता के आसपास घुमने वाला हो। इसलिए इस निधि ने गा्रमीण क्षेत्रों में झगड़े बढ़ा दिये हैं,गॉंव-गॉंव में जर्बदस्त विभाजन दिखाई देता है ।उस क्षेत्र में यह निधि खर्च ही नही की जाती जहॉं से यह आशंका होती है की वोट ही नही मिला है।नाममात्र के लिए इसमें सरकारी संस्था की संस्तुति ली जाती है।नेताजी का आदमी होने से विभाग हस्तक्षेप ही नही करता है,चाहे सिमेंट की जगह बजरी,बजरी की जगह मिट्टी लग जाय निर्माण कार्य बनते ही टूट जाय ,पूरा भुगतान हो जाता है ।नेता जी के कमिशन को अलग से रख दिया जाता है। संविधान के 73वें संसोधन में यह स्पष्ट कर दिया गया है पूरे 29 विभागों का कार्य पंचायतो व स्थानीय निकाय से कराया जाय, लेकिन सन् 1972-73 से आज तक पंचायतों को अधिकार सोंपे ही नही गये हैं,केन्द्र व राज्य सरकार का पंचायतो की उपेक्षा करना संविधान की भी उपेक्षा करना है। उŸाराखंड राज्य आंदोलन के समय यह सोचा गया था की उŸाराखंड राज्य देश के सामने आर्दश राज्य होगा, परन्तु आज राज्य बनने के बाद उत्तराखंड ठेकेदारखण्ड बनने ही जा रहा है।
-शमशेर सिंह बिष्ट