उत्तराखंड में जरुरत है डॉ बछेती जैसे लोगों की

दिल्ली- पलायन व बेरोजगारी हमेशा से ही उत्तराखंड के विकास में रुकावट बनती रही है।  फिलहाल बात करते है पौड़ी जिले की जिसने देश की राजनीति के साथ ही देश की सुरक्षा व अन्य कई छेत्रों को कई बड़े नाम दियें है फिर भी पहाड़ का विकास नहीं हो पा रहा है। लेकिन आज भी गढ़वाल के कई लोग ऐसे है जो न सिर्फ पहाड़ के दर्द को समझते है बल्कि अपनी मूल भाषा (गढ़वाली/कुमाउनी) को प्रचारित प्रसारित भी कर रहे है। ऐसे ही एक व्यक्ति है सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विनोद बछेती, जो मूल रूप से पौडी गढ़वाल के निवासी है और देश के जाने माने इंस्टिट्यूट DPMI (दिल्ली पैरामेडिकल इंस्टिट्यूट) के प्रबंधक है और इनके द्वारा समय समय पर गढ़वाली/ कुमाऊनी संस्कृति से जुड़े त्योहारों को दिल्ली में ही बड़े धूमधाम से मनाया जाता है साथ ही अपनी मूल भाषा (गढ़वाली) को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम किये जाते है जिसमे दिल्ली व आस पास के सभी उत्तराखंडी लोग शामिल होते है। दिल्ली जैसे बड़े शहर में अपने व्यस्थ जीवन से समय निकालना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इनके प्रयासों से अक्सर सभी लोग एकजुट होकर अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमो में भाग लेते है। डॉ. बछेती दिल्ली में उत्तराखण्डियों को एकजुट एकमुठ करने के लिए हमेशा ही प्रयासरत रहते है।

उत्तरखंड के पहाड़ी छेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देगा  DPMI, देश भर में है 22 शाखाये

DPMI की देश भर में 22 शाखाये है जिनमे से कई उत्तरखंड में भी संचालित है  DPMI का मुख्य उद्देश्य है की कम पैसों में बेहतर मेडीकल शिक्षा लेकर पहाड़ के बच्चे वही अपना रोजगार शुरू कर सके और पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर सकें। डॉ. बछेती द्वारा कई गरीब बच्चों को अपने इंस्टिट्यूट (DPMI) में निःशुल्क शिक्षा भी प्रदान की जाती है। अपनी शिक्षा की गुणवत्ता के चलते पूर्व में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम व देश की कई बड़ी हस्तियां समय समय पर वहा के छात्रों से मिलने व उनका मार्गदर्शन करने आती है। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विनोद बछेती द्वारा कुछ समय पूर्व कोटद्वार निवासी एक महिला खिलाड़ी जिसका चयन भारतीय फुटबॉल टीम की तरफ से 2 बार विदेश में खेले जाने के लिए हुआ लेकिन उसके परिवार की आर्थिक स्तिथि इतनी खराब थी कि उसके पास पासपोर्ट बनवाने तक के लिए पैसे नही थे। जब ये बात डॉ. बछेती को पता चली तो उन्होंने उस महिला खिलाड़ी व उसके परिवार से मुलाकात की और कहा कि देश के किसी भी स्पोर्ट्स होस्टल/ कॉलेज में वो एड्मिसन लें जहा उनका पूरा रहना, खाना, फीस का भुगतान वो स्वयं करेंगे। इतना ही नही काफी समय से गुमशुदा चल रही कशिश रावत को ढूंढने के लिए कई बार समय निकालकर प्रसाशन से मुलाकात की गई व कई राजनेताओं से भी मुलाकात की गई वही दूसरी ओर उत्तराखण्ड से पलायन रोकने व रोजगार खोलने को लेकर उत्तराखण्ड के कई सांसदों व मंत्रियो से बात भी की गई। जहा एक तरफ उत्तराखण्ड के राजनेताओं से जनता का भरोसा उठ चुका है कि वो कभी उस पहाड़ के दर्द को समझेंगे जिसने आज उन्हें इतनी बड़ी पहचान दी है साथ ही ये उनकी जिम्मेदारी भी है वही डॉ. बछेती जैसे लोग भी है जो हमेशा उत्तराखण्ड के पहाड़ी छेत्रों में रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन आदि को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहते है।

 

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