तिलांडी आंदोलन उत्तराखंड का जलिया वाला बाग़

टिहरी- जंगलों पर अपने हकहकूकों के लिए जनता का ‘तिलांडी आंदोलन’! बरसों तक याद रहेगी जनसंघर्षों की अमर गाथा! आंदोलन में शहादत हुये लोगों को शत शत नमन!

टिहरी राजशाही के काले अध्याय के तौर पर याद किए जाने वाले तिलाड़ी कांड को शुक्रवार को 87 साल पूरे हो गए हैं। इस दिन वनाधिकारों को लेकर शांतिपूर्ण बैठक कर रहे निहत्थे मासूम ग्रामीणों पर राजा के सैनिकों ने अंधाधुध फाय¨रग कर सौ से भी ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा था।
30 मई 1930, स्थान – यमुना नदी के किनारे तिलाड़ी का मैदान। रवांई परगने के ग्रामीण बड़ी संख्या में राजशाही की ओर से वन सीमा में ग्रामीणों की उपेक्षा के विरोध में एकत्र हुए थे। अपने हक हकूक सुनिश्चित करने की योजना पर विचार ही हो रहा था कि टिहरी राजा के वजीर चक्रधर जुयाल के निर्देश पर बंदूकों से लैस सैनिकों ने तिलाड़ी मैदान में जुटे ग्रामीणों पर फाय¨रग शुरू कर दी।

कुछ गोलियों के शिकार बने तो कई अपनी जान बचाने के लिए यमुना के तेज प्रवाह में कूद गए लेकिन बच ना सके। इससे 21 वर्ष 47 दिन पहले बैशाखी के दिन पंजाब में जालियांवाला बाग में भी अंग्रेजों से स्वतंत्रता की मांग को लेकर एकत्र हुए लोगों पर अंग्रेजी सैनिकों ने गोलियां बरसाई थी जिसमें 1800 से भी ज्यादा लोग मारे गए बताये जाते हैं, हालांकि आधिकारिक संख्या 379 थी। दोनों घटनाओं में अपने हक की आवाज बुलंद करने वाले मासूम लोग क्रूरता का शिकार बने। इस घटना को आज पूरे 85 साल बीत चुके हैं, लेकिन तिलाड़ी का गोली कांड आज भी यमुना घाटी के लोगों में सिहरन भर देता है। वन कानूनों को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीणों की शहादत ने आने वाले पीढि़यों में भी जोश भरा। रवांई परगना ही नहीं संपूर्ण रियासत में लोगों को वन अधिकार देने की मांग तेज हुई और जिसे आखिरकार राजा को भी मानना पड़ा।
—————–
‘वन अधिकारों और करों के विरोध को लेकर हुई बैठक को जिस तरह से दबाने की कोशिश की गई उससे यह दबा तो नहीं लेकिन प्रेरणा स्रोत बन गया।’
प्रो. आरएस असवाल, संस्थापक तिलाड़ी सम्मान समारोह समिति।
साभार : पंकज कुमार! उत्तरकाशी!
Written by Sanjay Chauhan from ground zero

Previous article​पोखरी की बेटी ‘आइशा’ नें रचा इतिहास
Next articleदुगड्डा में लव जेहाद की घटना से हंगामा