नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) में दाखिले के नियमों के गंभीर उल्लंघन को लेकर राजस्थान के 10 निजी डेंटल कॉलेजों पर कड़ा रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने इन सभी कॉलेजों पर 10-10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संबंधित कॉलेजों ने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की, जिससे दंत चिकित्सा शिक्षा के मानकों को गंभीर नुकसान पहुंचा है।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी की पीठ ने कॉलेज प्रबंधन के साथ-साथ राज्य सरकार की भूमिका पर भी कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि वर्ष 2007 में तय किए गए नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया गया और राज्य सरकार ने बिना अधिकार के दाखिले में छूट दी। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) के निर्णयों को भी समय पर लागू नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक सत्र 2016-17 में बीडीएस दाखिलों के दौरान कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने के लिए राजस्थान सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह 10 लाख रुपये की राशि राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Rajasthan State Legal Services Authority – RSLSA) में जमा करे।
क्या था पूरा मामला?
बीडीएस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए नीट (NEET) परीक्षा में न्यूनतम प्रतिशत अंक अनिवार्य रूप से तय हैं। आरोप है कि राजस्थान सरकार ने बिना किसी वैधानिक अधिकार के पहले न्यूनतम अंकों में 10 प्रतिशत और फिर अतिरिक्त पांच प्रतिशत की छूट दे दी। इस फैसले के चलते कई ऐसे छात्रों को दाखिला मिल गया, जो निर्धारित पात्रता मानकों को पूरा नहीं करते थे।
मामला यहीं नहीं रुका। अदालत के अनुसार, कुछ निजी डेंटल कॉलेजों ने सरकार द्वारा दी गई 10+5 प्रतिशत की छूट से भी आगे बढ़कर ऐसे छात्रों को दाखिला दे दिया, जो पूरी तरह नियमों के विपरीत था। कोर्ट ने इसे शिक्षा व्यवस्था के साथ गंभीर खिलवाड़ बताया।
जुर्माने की राशि का उपयोग कहां होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सभी संबंधित डेंटल कॉलेज आठ सप्ताह के भीतर जुर्माने की पूरी राशि आरएसएलएसए में जमा करें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस धनराशि का उपयोग वन स्टॉप सेंटर, नारी निकेतन, वृद्धाश्रम और बाल देखभाल संस्थानों सहित सामाजिक कल्याण से जुड़े कार्यों में किया जाएगा।
अदालत ने अपने फैसले में यह संदेश भी दिया कि चिकित्सा और दंत चिकित्सा शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नियमों से कोई समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और भविष्य में इस तरह की लापरवाही पर और सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।



