बिना वर्दी के पुलिस ड्यूटी या आंदोलन में दमनात्मक कार्यवाही करना नियमानुसार है या फिर वर्दी की तानाशाही !!!!
आजकल हुए भर्ती पुलिस कर्मियों को शायद यह गलत फहमी हो गयी है कि खाकी की वर्दी का मतलब शहंशाह की कुर्सी और जबाँ का बेलगाम करने का लाइसेंस।
और यही अब अक्सर देखने को मिलने लगा है अपनी ड्यूटी के नियमो को ताक में रख कर किसी भी प्रकार से अपनी मनमानी करना यह आम बात हो गयी है।
ऐसी वाक्य कल श्रीनगर में देखने को मिला, महिला पुलिस कर्मी और सिविल ड्रेस में आंदोलन कर रही महिलाओ से पहले बदतमीजी से बात करने लगी और फिर पुरुष वर्ग के विरोध करने में चुप – चुप या फिर गंदे रूप से एक्सप्रेशन देने लगे।
तब जनता द्वारा नियम का पाठ पढ़ाना पड़ा और अंत में महिला पुलिस अधिकारी को चुप होना पड़ा।
सवाल यह है कि वर्दी की गरिमा का ऐसा दुरुपयोग किया जाएगा।
एक लाइन में कहा जाये कि वर्दी क्या किसी की जागीर बन कर रहेगी ???
समीर रतूड़ी आंदोलकारी