अवनीश अग्निहोत्री(कोटद्वार)- यूं तो उत्तराखण्ड में कई ऐसे अधिकारी है जो समय-समय पर कार्यालय की फ़ाइलों से समय निकालकर फील्ड में छापेमारी कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करते रहते है। जिनमे से हरिद्वार के डीएम दीपक रावत सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहते है। सोशल मीडिया पर सुर्खिया बटोर चुके डीएम दीपक रावत अब तक कई बार निरीक्षण के दौरान स्कूल-कॉलेज, हॉस्पिटल, मेडिकल स्टोर, एआरटीओ ऑफिस, नगर निगम और भी न जाने कितने स्थानों पर छापेमारी कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही कर चुके है। ये वो कार्यवाही थी जो सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुची है इसके अलावा भी उन्होने जनता की कई शिकायतो का निस्तारण बड़ी ही तेजी से किया है। वही जिला कारागार हरिद्वार में रक्षाबंधन पर महिला कैदियों के साथ त्योहार मनाना, शहीद के घर जाकर एक बेटे की तरह उसकी माँ का जन्मदिन मनाना जैसे कार्यो से भी आम जनता का दिल जीता है।
इसी प्रकार डीएम मंगेश घिण्डियाल भी इसी तरह की कार्यवाही को लेकर आम जनता के दिलो पर राज कर चुके है। साथ ही अपने बेटे का जन्मदिन प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के साथ मनाना, मिड डे मील में बच्चो के साथ भोजन करना और महिला विद्यालय में अध्यापक न होने पर अपनी पत्नी को विद्यालय जाकर फ्री में बच्चो को शिक्षा देने जैसे कार्यो कि भी सराहना हुई है। ऐसे ही और भी कई उदाहरण है जहां अधिकारी एक आम नागरिक बनकर निरीक्षण करने कार्यालय पहुचते है और भृस्टाचार और लपरवाही करने वालो पर कार्यवाही करते है। लेकिन हैरानी की बात है कि ये सब देखकर भी उन अधिकारियों को बिल्कुल भी शर्म नही आती जो सिर्फ फाइलों तक ही काम करना चाहते है फील्ड में नही।
बात करे पौड़ी जिले की तो यहां आम जनता का अब अधिकारियों पर से भरोसा उठने लगा है। लिखित शिकायत देने के बावजूद भी शिकायती पत्र एक दूसरे की टेबल पर घूमता रहता है और जब समय ज्यादा हो जाता है तो एक छोटा सा जवाब मिलता है निरीक्षण के दौरान ऐसा कुछ भी नही मिला। पर ये निरीक्षण कब हो जाता है पता ही नही चलता। पौड़ी जनपद के कोटद्वार में तो हाल और भी बुरा है। बात करे पूर्ति निरीक्षक कार्यालय, आबकारी अधिकारी कार्यालय, खाद्य सुरक्षा कार्यालय, स्वास्थ्य विभाग, एआरटीओ कार्यालय, डीएम ऑफिस पौड़ी व तहसील कोटद्वार में तैनात कुछ अधिकारियों की तो ये आम तौर पर निरीक्षण करते हुए कभी दिखते ही नही।
हालांकि इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि कार्यालय में स्टाफ की कमी हो, या कोई राजनैतिक दबाव या फिर एक मुख्य कारण की इनमे से कई अधिकारी व कर्मचारी पौड़ी या कोटद्वार के ही रहने वाले है या पिछले कई सालों से यही तैनात है जो ये नही चाहते कि कार्यवाही करने के बाद कही उनका ट्रांसफर दूसरे स्थान पर न कर दिया जाए। लेकिन इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है जिनकी शिकायतो पर कार्यवाही नही हो पाती। और भृस्टाचार को बढ़ावा मिलता है।