अवनीश अग्निहोत्री- दहेज लेना न सिर्फ एक सामाजिक कुरीति है बल्कि कानूनी अपराध भी है। इसके बावजूद भी यूपी, बिहार सहित देश के कई राज्यो में शादियों में ये सिलसिला जारी है। दहेज से जुड़े मामले थाने और कोर्ट में आये दिन दिख जाते है जिनमें कुछ मामलों की सुनवाई जल्दी हो जाती है और कुछ मामले आज भी हमारी अदालतों में लंबित पड़े हैं।
लेकिन आपको ये जानकर शायद थोड़ी हैरानी होगी कि दहेज के एक मामले में हाल में ही कोर्ट ने एक दहेज के आरोपी को बरी करते हुए कहा है कि मामला दहेज़ का नहीं बल्कि मुसीबत के समय पैसे की जरूरत का है।
जी हा ये मामला मुंबई का है जहां बोरीवली मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा कि आर्थिक परेशानियों के चलते या फिर घर की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए नकद पैसे की मांग को दहेज नहीं माना जा सकता। इसी के साथ कोर्ट ने इस मुकदमें को सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया।
इस मुकदमे की सुनवाई के समय कोर्ट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, ‘अगर व्यक्ति द्वारा आवश्यक घरेलू सामान के लिए 5 लाख रुपये मांगे गए थे, तो भी यह आईपीसी की धारा 498 ए के दायरे में नहीं आता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि कथित क्रूरता के खिलाफ 2 साल बाद एफआईआर दर्ज की गई और इसमें देरी क्यों हुई इसको लेकर कोई जवाब नहीं दिया गया है। अदालत के अनुसार दहेज निषेध कानून के अंतर्गत दहेज उसे कहा जाएगा जब शादी से पहले या बाद में किसी भी रूप में कीमती सामान दिया जाता है या फिर देने पर सहमति बनती है।
कोर्ट के अनुसार ‘अभियोजन पक्ष की तरफ से पेश सबूतों से यह साफ नहीं होता कि पति ने दहेज निषेध कानून की धारा-2 के तहत किसी तरह के ‘दहेज’ की मांग की थी। लड़के के घर मे यदि आर्थिक परेशानी होती है तो उन जरूरतों को पूरा करना दहेज नही माना जायेगा।