तो ये है पौड़ी जनपद में शराब की ओवर रेटिंग का कारण। जेल के अंदर से होती है सेल्समैनों की नियुक्ति, नेता व अधिकारी भी संलिप्त

अवनीश अग्निहोत्री (पौड़ी/कोटद्वार)

 यूं तो प्रदेश भर में ओवर रेट शराब बेचने की प्रथा बहुत पहले से चलती आ रही है। फिर चाहे सरकार किसी की भी हो और अधिकारी कोई भी हो। राजस्व के नाम पर जगह-जगह शराब की दुकान (ठेका) खोलकर शराब बेचना तो एक हद तक सही हो भी सकता है पर पूरे उत्तराखण्ड में करोड़ो रुपए की ओवर रेटिंग का पैसा किस-किस नेता, अधिकारी और माफियाओ में बटता है इस पर गौर फरमाना भी जरूरी है क्योंकि इस भृस्टाचार मे और अपराध में शराब की दुकान के कुछ सेल्समैन और मैनेजर तो ग्राहकों की नजर में आ जाते है पर बिना अधिकारी, जनप्रतिनिधि और दबंगो की मिलीभगत के ये सब मुमकिन ही नही।
फिलहाल बात करे पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार वाइन शॉप की तो आलम ये है कि इस शराब के ठेके पर ग्राहक ऐसे डरे सहमे हुए जाते है जैसे गुंडों को उनका हफ्ता पहुचाने जा रहे हो। सर झुकाकर, हल्की सी आवाज में, अंदर बैठे दबंग सैल्समेन से शराब की बोतल मांगी जाती है और सेल्समैन चिल्लाते हुए मुह मांगे दाम बोलता है और फिर ग्राहक चुप-चाप ओवररेट कीमत चुकाकर, बोतल लेकर चलता बनता है। सरकारी शराब की दुकान पर नियम है कि दुकान में बारकोड स्कैनर बिलिंग मशीन द्वारा बिल देना अनिवार्य है, और बिना जिलाधिकारी कार्यालय से पंजीकरण कराए हुए कोई भी सेल्समैन दुकान पर काम नही कर सकता। जबकि आपको ये जानकर हैरानी होगी कि कोटद्वार के साथ ही जिले भर की ज्यादातर शराब की दुकानों पर बैठने वाले ज्यादातर सेल्समैनो का पंजीकरण होता ही नही है। इतना ही नही शुत्रो के अनुसार इसके साथ ही शराब की ओवर रेटिंग पर सवाल करने वाले और बिल मांगने वाले ग्राहकों को डराने-धमकाने और उनसे मार-पिटाई करने के लिए कुछ गुंडे भी इन शराब की दुकानों पर बैठाए जाते है जिनकी नियुक्ति सीधे पौड़ी जेल के अंदर से ही हो जाती है। किसी भी अपराध में कम समय के लिए जेल में जाने वाले अपराधी जब वहा लंबे समय से रहने वाले अपने कुछ आकाओं से मिलते है और उनके चेले बन जाते है  जिसके बाद उनका सीधा सा हिसाब बन जाता है कि तुम्हारा अपराध छोटा है तुम जल्दी जेल से छूटोगे और जब बाहर निकलोगे तो तुम्हारा धंधा-पानी हम चलवाएंगे, इसके बदले समय-समय पर जेल में सेवा-पानी पहुचते रहना। और इस तरह जेल के अंदर बैठकर कुछ शराब की दुकानों के लिए सेल्समैन नियुक्त कर लिए जाते है और बाहर आकर उन्हें सीधे शराब की दुकान पर काम मिल जाता है। ये नियुक्ति इसलिए होती है कि उनकी आपराधिक छवि से सामने खड़ा ग्राहक बिना कोई सवाल करे ओवर रेट शराब लेकर चलता बने। इसके साथ ही कई सफेदपोश नेताओ का हाथ भी इन ठेका संचालको पर होता है क्योंकि दो नम्बर का काम करने के लिए नेताओ का आशीर्वाद प्राप्त करना तो सबसे जरूरी है। और इस बीच अधिकारी भी मलाई खाने से नही चूकते। यही कारण है की आबकारी व राजस्व अधिकारियों से शिकायत करने पर ज्यादातर अधिकारी पहले ठेके पर फ़ोन करके उन्हें सूचना देते है फिर निरीक्षण नाम की नौटंकी करते है। और जांच रिपोर्ट में छोटी-मोटी खामी दिखाकर पल्ला झाड़ लेते है जिसके बाद अगले दिन अखबारों में चंद ग्राहकों के दिल की तसल्ली के लिए खबर छपती है कि अधिकारी निरीक्षण करने पहुचे जहा मौके पर सब ठीक-ठाक मिला और उनके बयान छपते है कि शराब की ओवर रेटिंग किसी हाल में बर्दास्त नही की जाएगी, शिकायत मिलने पर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। इसके साथ ही आयकर विभाग भी हर रोज 2 से 3 लाख रुपये की ओवर रेटिंग करने वाले ठेका संचालको से उनकी ओवर इनकम का हिसाब तक नही पूछता की ये पैसा कैसे आया और कहा गया। लेकिन जनाब ये पब्लिक है ये सब जानती है कि कौन अधिकारी, जनप्रतिनिधि कितना दूध का धुला है। पर हर कोई आम जनता के सब्र का इम्तिहान लेने पर तुला रहता है।

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