देहरादून: नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी डीएफओ पर दस-दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना प्रदेश में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में हीलाहवाली करने, ग्राम पंचायतों का मानचित्र अपलोड नहीं करने पर लगाया गया है I
नैनीताल हाईकोर्ट ने पीसीसीएफ, सदस्य सचिव प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित गढ़वाल और कुमाऊं आयुक्त को 15 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के निर्देश दिए हैं। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में की गई ।
इससे पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण न होने पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा था कि इसे लेकर धरातल पर कोई काम नहीं हो रहा है। अधिकारियों की ओर से प्लास्टिक और अन्य कचरों के निस्तारण के लिए जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, केवल कागजी काम हो रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने जिलाधिकारियों के रवैये से नाराज होकर कई दिशा निर्देश जारी किए थे। इनमें कहा था कि कोर्ट एक ई मेल आईडी बनाएगा, जिसमें प्रदेश के नागरिक सॉलिड वेस्ट और कचरे की शिकायत दर्ज कर सकेंगे।
ये शिकायतें कुमाऊं-गढ़वाल कमिश्नर को भेजी जाएंगी। दोनों डिवीजन के आयुक्त अपने-अपने क्षेत्र की शिकायतों का निस्तारण 48 घंटे के भीतर कर इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट में देंगे। कुमाऊं-गढ़वाल कमिश्नर संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों के साथ गांव-गांव का दौरा कर पता करेंगे कि वहां सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की क्या व्यवस्था है। उसका कैसे निस्तारण किया जा सकता है।
जनहित याचिका की गई दायर
दरअसल, अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जिसमे कहा गया है कि राज्य सरकार ने 2013 में प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण के लिए नियमावली बनाई थी, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने भी प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स में उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेता को जिम्मेदारी दी थी कि वह जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक वापस ले जाएंगे। अगर नहीं ले जाते है तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फंड देंगे जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें। जितेन्द्र यादव की शिकायत थी कि था कि उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है।