जबलपुर-अपने जीवनसाथी के दुनिया से जाने के बाद अकेले ही दिन रात काम करके अपने सपने पूरे करने में लगी ये महिला है संध्या सिंह जो अपने बच्चों को अब एक बड़ा अफसर बनाने का सपना पूरा करने के लिए रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करके दूसरों का बोझ उठाती है और इस तरह वो दूसरे के आगे हाथ न फैलाकर दिन रात मेहनत करके तीन बच्चों और बूढ़ी सास की देखरेख करती है
संध्या कटनी रेलवे स्टेशन में प्रतिदिन 270 किलोमीटर का सफर तय करके कुली का काम करने आती है। उसने रेलवे से कुली का लाइसेंस अपने नाम कराते हुए बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए साहस के साथ जब वजन लेकर प्लेटफॉर्म में चलती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं और संध्या के जज्बे को सलाम करते हैं। 30 साल की उम्र में वह बच्चों की देखभाल के साथ एक पत्नी का फर्ज बखूबी निभा रही थी, इसी बीच किस्मत ने उसे धोखा दे दिया। हंसी-खुशी कट रही जिंदगी ने एकदम से करवट बदला और पति भोलाराम एक बीमारी से ग्रस्त हो गए। जिंसके बाद पति का देहांत हो गया। इससे घर की स्थिति लडख़ड़ा गई। बच्चों की परवरिश और दो वक्त की रोटी की चिंता उसे सताने लगी और फिर साहस के साथ संध्या हिम्मत नहीं हारी। बच्चों के खातिर उसने खुद को संभाला और यह निश्चित किया कि चाहे कुछ भी हो वह बच्चों की बेहतर परिवरिश करने वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। संध्या प्रतिदिन न सिर्फ दुनिया को बोझ ढ़ो रही है बल्कि प्रतिदिनि 270 किलोमीटर का सफर भी तय कर थोड़ा बहुत कमाकर गुजारा कर रही है। संध्या प्रतिदिन कुंडम से 45 किलोमीटर का सफर तय कर जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचती है और फिर इसके बाद कटनी पहुंचती है। वहीं पर काम करने बाद जबलपुर और फिर घर लौटती है। प्रतिदिन इतनी कठिनाइयों से गुजरकर बच्चों और पेट की खातिर काम कर रही है। संध्या का कुली बिल्ला नंबर 36 है। पति भोलाराम की मौत के बाद संध्या की अनुकम्पा नियुक्ति हुई। जनवरी 2017 से वह मर्दों की तरह सिर और कंधे पर वजन ढो रही है। संध्या कटनी स्टेशन में 45 कुलियों में से पहली महिला कुली है। साथी कुलियों के साथ वह सिर पर बोझ ढोकर अपनी जिंदगी को गुजार रही है। वह स्टेशन में पहुंचती है और यात्रियों का सामान उठाने खुद आवाज लगाती है।बच्चों की परवरिश जरुरी असमय सिर से पति का साया उठ जाने से संध्या बस यादों में ही सिसककर रह जाती है। संध्या के ऊपर बूढ़ी सास की सेवा और बच्चों की परवरिश की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। संध्या के तीन बच्चे हैं। शाहिल उम्र 8 वर्ष, हर्षित 6 साल व बेटी पायल 4 साल की है। तीनों बच्चों का भरण-पोषण, शिक्षा के लिए वह इतनी बड़ी परेशानी उठाकर कटनी पहुंचती है और दुनिया का बोझ ढोकर जिंदगी का बोझ हलका कर रही है। वो अपने बच्चों को सेना में बड़े अफसर बनाना चाहती है।