देश की अमूल्य धरोहर कर्णाश्रम की हो रही अनदेखी

अवनीश अग्निहोत्री

कोटद्वार- देश को भारतवर्ष का नाम दिलाने वाले चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम अनादिकाल से ही अपनी पहचान की मोहताज बनी हुई हैं जो की उत्तराखण्ड के कोटद्वार से 12 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। स्थिति यह है कि अविभाजित उत्तर प्रदेश और उससे अलग होने के 16 वर्ष बाद उत्तराखंड सरकार के प्रयास इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोए रखने के नाम पर केवल कागजों व फाइलों तक ही सिमटे हुए हैं, जिससे यह ऐतिहासिक धरोहर आज भी वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने के बजाए पहचान को खोता जा रहा हैं।

हमारे देश का नाम भारतवर्ष क्यों पड़ा इस बात का जिक्र पाठ्यक्रम में होने के साथ ही कहानी, किस्सों की किताबों में सभी ने पढ़ा होगा और यह बात भी सभी जानते हैं, लेकिन देश के नामदेवा चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्म व क्रीड़ास्थली ऐतिहासिक धरोहर अविभाजित उत्तर प्रदेश के जमाने से ही उपेक्षित है। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद वर्ष 2000 में उत्तराखंड बना और उसके बाद सभी को आस थी कि इस ऐतिहासिक धरोहर के दिन बहुरेंगे, लेकिन राज्य निर्माण के 16 वर्षो बाद भी प्रदेश की सत्तासीन सरकारों ने इसकों तजरीह नहीं दी, जिससे आज भी यह ऐतिहासिक धरोहर गुमनाम के अंधेरे में घिरी है और अपनी ही पहचान की मोहताज बनी है। हालांकि इन 16 वर्षो में पर्यटन के नाम पर सरकारी खजाने की बंदरबांट अवशय हुई।
ज्ञात हो कि वर्ष 1953 में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जापान यात्रा पर गए, इस दौरान नेहरू जापानी बच्चों से मिले और उन्होंने नेहरू से भारत के संबंध में सवाल पूछे। इस दौरान जापान के बच्चों ने नेहरू से पूछा कि कण्वाश्रम कहां स्थित है, जिस पर देश के प्रधानमंत्री उत्तरविहीन हो गए, लेकिन उन्होंने बच्चों को आश्वासन दिया कि वे इस संबंध में भारत जाकर जानकारी जुटाएंगे। भारत आने के बाद नेहरू ने उत्तर प्रदेश सरकार से कण्वाश्रम के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कहा, जिसके बाद 1954 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. संपूर्णानंद खुद कण्वाश्रम आए और यहां पर महर्षि कण्व की तपोस्थली कण्वाश्रम में कण्व के मंदिर का निर्माण करवाया लेकिन उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1955 में मृग विहार की स्थापना की, लेकिन कण्वाश्रम के विकास के लिए कोई भी कार्ययोजना तैयार नहीं हुई। पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद कण्वाश्रम के विकास की उम्मीद जगी, इसके लिए शासन स्तर पर कई बार कागजों में योजनाएं भी तैयार हुई, लेकिन कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर पाई। कार्ययोजना में कण्वाश्रम को पर्यटन के रूप में विकसित करने, झील का निर्माण करने आदि शामिल थे। हालात देखकर तो लगता है कि अब भी भारत सरकार को कण्वाश्रम के बारे में जानकारी ही नहीं वरना इतने बड़े ऐतिहासिक स्थल की इस तरह दुर्दशा न होती।
योगी आदित्यनाथ के गाँव से 20 की.मी की दूरी पर कण्वाश्रम
वहीं यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का गांव पंचूर कण्वाश्रम से महज 24 किमी दूरी पर स्थित है।
पूर्व में यमकेश्वर विधानसभा के अधिकांश गांवों के लोग कण्वाश्रम के रास्ते ही कोटद्वार बाजार अपनी जरूरतों के सामान की खरीददारी करने पहुंचते थे। इस पैदल मार्ग कण्वाश्रम पोखरी सिमलना मोटर मार्ग के रूप में बनाने की मांग समय-समय पर उठती रही, लेकिन वन अधिनियम का पेंच फंसने के कारण इस मार्ग का निर्माण संभव नहीं हो पाया।

 

 

 

photo www.merapahadforum

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