कामाख्या मंदिर, यहा होती है माता की योनि की पूजा

हिन्दू धर्म में देवी देवताओ के कई तरह के धार्मिक स्थल है और ऐसे ही एक धार्मिक स्थल कामाख्या मंदिर की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है।  कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी से कुछ ही दूरी पर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उस के पति शंकर को यज्ञ में अपमानित किया और शिव जी को अपशब्द  कहे थे तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया। शंकर  ने सती कि  मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया। तब सती के  शरीर  के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाये। माना जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी  स्थल पर कामाख्या  मन्दिर का निर्माण किया गया।

इस मंदिर के गर्भ गृह में योनि के आकार का एक कुंड  है जिसमे से जल निकलता रहता है। यह योनि कुंड कहलाता है। यह योनि कुंड  लाल कपडे व फूलो से ढका रहता है।

कामाख्या मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघौरी हिस्‍सा लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि ‘अम्बुबाची मेले’ के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिन में योनि  कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है । ‘अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।

मां कामाख्या देवी की रोजाना पूजा के अलावा भी साल में कई बार कुछ विशेष पूजा का आयोजन होता है। इनमें पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं।

दुर्गा पूजा:  इस मंदिर में अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दौरान इस पूजा का आयोजन किया जाता है।

अम्बुबाची पूजा:  ऐसी मान्यता है कि अम्बुबाची पर्व के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती है इसलिए  तीन दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन जब मंदिर खुलता है तो इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

पोहन बिया: पूस मास के दौरान भगवान कमेस्शवरा और कामेशवरी की बीच प्रतीकात्मक शादी के रूप में यह पूजा की जाती है

 

प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है गीला वस्त्र

कामाख्या मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है कामाख्या की यात्रा

कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है, उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है। कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिर्वाय है।

दर्शन के लिए उचित समय 

कामाख्या मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च का माना जाता है। इस समय काफी श्रद्धालु वहा दर्शन करने भी आते है।

कैसे पहुचे मंदिर

कामाख्या मंदिर के लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर गुवाहाटी है। गुवाहाटी में आवागमन के सभी साधन उपलब्ध है। गुवाहाटी में एयरपोर्ट भी है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से ये ये मंदिर 10 कि.मी की दूरी पर है।

 

 

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