उत्तराखंड वैसे तो अपने आप मे कई लोककथाओं का भंडार है लेकिन गर्मी के इस मौसम में जो कहानी में बताने जा रही हूं वो दिल छू जाने वाली है, जो पहली बार गावँ में काफल खाते वक़्त मेरी स्वर्गीय दादी ने हमें सुनाई थी।
‘काफल पाको, मै नि चाखो’ ।
काफल की कहानी सुनाने से पहले आपको बता दूं कि ‘काफल’ पहाड़ों में पाया जाने वाला एक जंगली फल है, जो गर्मियों के दिनों में होता है। लोग पेड़ों से तोड़कर काफल को बड़े चाव से खाते हैं। इन दिनों तो काफल बाज़ार में भी बिकने लगा है, वो भी ऊंची कीमत में। काफल की लोकप्रियता का पता इसी से लगा सकते हैं कि उत्तराखंड आने वाले सैलानी बड़े ही चाव से काफल खाते हैं। इस लोककथा में एक और शब्द है… घुघुती।… घुघुती एक पक्षी होता है… जो दिखने में कुछ कुछ कबूतर की तरह दिखता है। )
अब लोककथा
एक वक्त की बात है। एक छोटी सी पहाडी पर एक घना जंगल था। उस पहाडी के पास एक गांव में एक विधवा औरत अपनी एक छोटी बच्ची के साथ रहती थी। महिला काफी गरीब थी, इसलिए कई दिन बिना भोजन के ही बिताने पड़ते थे। अक्सर महिला और उसकी बेटी जंगल के फल खाकर ही अपना जीवन बसर करते थे….
औरत कड़ी मेहनत कर के किसी तरह अपनी बेटी के सहारे अपने दिन काटती थी क्यूंकि उस विधवा औरत का सहारा एक मात्र उसकी छोटी बच्ची थी। एक दिन की बात है महिला जंगल से रसीले काफल के फल तोडकर लाई। उसने काफलों से भरी टोकरी अपनी बेटी को सौंप दी, और कहा कि वो उसकी हिफाजत करे शाम को दोनों साथ में खाएंगे। महिला खुद खेतों में काम करने के लिए वापस चली गयी। रसभरे काफल देखकर बच्ची का मन काफल खाने को ललचाया, लेकिन अपनी मां की बात सुनकर उसने एक भी दाना नही खाया।
शाम को महिला खेतों से काम कर वापस लौटी तो माँ को देखकर बेटी ख़ुशी के साथ दौड़कर आयी और बोली माँ काफल खाएं … जब बेटी काफल लायी तो मां ने देखा कि उनकी मात्रा थोड़ी कम है मां ने गुस्से में बेटी से पूछा कि क्या तूने काफल खाये बेटी ने बढ़ी मासूमियत के साथ ना बोल दिया …उसको लगा बेटी जुठ बोल रही है और ना सुनते ही औरत को गुस्सा आ गया उसने काफल की टोकरी बाहर फेंक दी, उसको लगा कि बच्ची ने टोकरी में से कुछ काफल खा लिये हैं। उसने गुस्से में एक बडा पत्थर बेटी की तरफ फेंका, जो गलती से बच्ची के सिर पर लगा और उसकी वहीं मौत हो गई बेचारी माँ रातभर बच्ची के मूर्छित शरीर के साथ लिपट के विलाप करती रही….
वो फल रातभर बाहर ही पड़े रहे,अगली सुबह महिला ने देखा काफल बारिश में भीग कर फूल गये थे, और टोकरी फिर से भर गयी थी। औरत को तुरंत ही अपनी गलती का अहसास हुआ। उसे अपनी नासमझी पर बड़ा अफसोस होने लगा, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसने अपनी नासमझी और गुस्से में अपना बेटी को खो दिया।
कहते हैं कि आज भी जब जंगलों में काफल पकते है तो घुघुती विलाप करती है… वो बच्ची आज भी ‘घुघुती’ पक्षी बन कर अमर है। ये घुघुती पक्षी आज भी झुंडों में घुमते हैं। और आवाज़ लगाते हैं…… ‘काफल पाको, मैल नि चाखो’ (काफल पक गए मैंने नहीं खाये)…तभी दूसरा पक्षी चिल्लाता है ‘पुर पुताई पुर पुर'(पूरे हैं बेटी पूरे हैं)।।