देहरादून: राज्य के आबादी वाले क्षेत्रों में गुलदार का आंतक अपने चरम पर है। प्रदेश की राजधानी दून सहित पहाड़ी क्षेत्रों के लोग गुलदार की गतिविधियों से खौफजदा है। हालात इतने बदतर हो चले है कि यहां कई क्षेत्रों में लोगों ने शाम होते ही अपने घरों से निकलना छोड़ दिया है तो वहीं कई इलाकों में ग्रामीणों ने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। इस मामले में वन विभाग पूरी तरह से आंखे मूदे चैन की नीद सो रहा है। जिससे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग दहशत के साए में अपना जीवन यापन करने को मजबूर है।
यूं तो राज्य में वन्य जीवों के साथ मानव संघर्ष आम बात है। लेकिन बीते कुछ सालों में यह संघर्ष काफी हद तक बढ़ चुका है। मानव द्वारा जंगलों का कटान के साथ ही अवैध शिकार कर मांसाहारी वन्य जीवों के शिकार बनने वाले जानवरों को खत्म कर दिया जा रहा है इसलिए अब मासंाहारी वन्य जीव अब मानव बस्तियों का रूख करने में लगे हुए है। जिनमे खास तौर पर उत्तराखण्ड में बाघ व गुलदार (लैपर्ड) शामिल है।
गुलदार (लैपर्ड) के आंतक का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीते दो दिनों से जिला चम्पावत के टनकपुरकृचंपावत राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुलदार चार दोपहिया वाहन सवारों पर हमला कर चुका है। गनीमत यह रही कि इन हमलों में सभी लोग बालकृबाल बच गये। यहां सूचना मिलने के बाद भी वन विभाग इन हमलों को रोकने में नाकामयाब हो रहा है।
वहीं दूसरी ओर इन दिनों रूद्रप्रयाग के जखोली विकासखंड के ग्राम पंचायत कुन्याली में गुलदार की दहशत से ग्रामीण सहमें हुए हैं। गुलदार के आतंक का इतना खौफ है कि ग्रामीण शाम होते ही घरों में दुबकने के लिए मजबूर हैं और साथ ही कई बच्चों ने विघालय जाना छोड़ दिया है।
बीते एक सप्ताह के भीतर गुलदार ने यहां एक खच्चर सहित आधा दर्जन से अधिक पशुओं को निवाला बना लिया है। अब ग्रामीणों का कहना है कि अगर यहां जनहानि हुई तो इसका जिम्मेदार वन विभाग होगा। यह तो सिर्फ दो उदाहरण हैI राज्य की राजधानी देहरादून सहित तकरीबन सभी जिलों में इन दिनों गुलदार की दहशत बनी हुई है। जबकि वन विभाग मामले में मूकदर्शक बना हुआ है, विभाग इसका कोई स्थायी सामाधान निकालने को तैयार नहीं है।