अवनीश अग्निहोत्री (कोटद्वार)
इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नही। इसका जीता जागता उदाहरण कोटद्वार में देखने को मिला, जहा एक मुस्लिम महिला ने एक अनाथ हो चुकी बच्ची को पाला है और ये अनाथ बच्ची हिन्दू परिवार से है। कोटद्वार के कौड़िया छेत्र में लगभग 10 वर्ष पहले दो परिवार आस पास ही रहते थे दोनों ही परिवार गरीब थे और झोपड़ी में रहते थे हिन्दू परिवार में पति पत्नी और उनकी नवजात बेटी थी, पति शराबी था जो कोई काम नही करता था पत्नी भी जैसे तैसे अपना और बेटी का पालन पोषण कर जिंदगी काट ही रही थी कि अचानक एक दिन तबियत ज्यादा खराब हों गयी पर महिला अकेली होने के कारण किसी से कुछ नही बता पाई और मर गयी जिंसके बाद शराबी पति जब घर पहुचा तो उसे अपनी पत्नी की मौत से ज्यादा फर्क भी नही पड़ा।
ये सब होता देख कई लोग वहा तमाशबीन बने रहे पर नवजात बच्ची के बारे में किसी ने नही सोचा, शायद इस वजह से क्योकि आस पास सभी परिवार भी गरीब ही थे, जो खुद ही अपना परिवार पालने में भी सक्षम नहीं थे। वही झोपड़ी में रहने वाली पास की ही मुस्लिम महिला ने जब ये सब देखा और उसके कानों में बच्ची के रोने की आवाज बार बार गूंजी तो उसने नवजात बच्ची को उठाकर सीने से लगा लिया। और अपने पति की गैर मौजूदगी में घर ले आयी। शाम को पति जब काम से लौटा तो उसने पूछा ये बच्चा किसका है जिसके बाद उसने पूरी कहानी सुनाई। पति ने उसे बताया कि इस्लाम मे बच्चा गोद लेना हराम है इस पर पत्नी ने कहा कि बच्चा गोद लेना हराम है पर उसे पालना और किसी का जीवन बचाना तो हराम नही है। इस पर इन दोनों में कहासुनी हुई और पति बोला अगर ये बच्ची घर मे रहेगी तो में इस घर मे नही रहूंगा।
ये सुनते ही पत्नी रोने लगी और पति के आगे गिड़गिड़ाने लगी लेकिन पति ने एक न सुनी, और घर छोड़कर चला गया। महिला ने भी ठान ली थी कि वो किसी भी हाल में बच्ची को तड़फता हुआ नही छोड़ सकती न ही इसके लिए किसी पर भरोसा कर सकती है। महिला सिलाई कढ़ाई करना जानती थी और धीरे धीरे महिला ने सिलाई कढ़ाई करके अपना और बच्ची का भरण पोषण करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद पति वापस तो आया लेकिन आज भी वो बच्ची को दिल से नही अपनाता। एक वर्ष पूर्व इनकी अपनी भी एक बेटी हो गयी जिंसके बाद बच्ची के लिये पति का प्यार तो और कम हो गया पर महिला उसे अब भी अपनी सगी औलाद की तरह ही चाहती है उसे पास ही के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती भी है साथ ही अपनी हैसियत के हिसाब से उसकी हर इच्छा पूरी करती है। पढ़ाई के लिए कुछ समय तक हंस कल्चरल सेंटर कोटद्वार ने भी बच्ची को मदद की। लेकिन महिला अब किसी को उस बच्ची की कहानी नही सुनाती क्योकि उसे लगता है कि ज्यादा लोगो को इसकी जानकारी हुई तो लोग उसे उसकी बेटी से जुदा कर देंगे। यहा तक कि महिला ने हमे भी अपनी पूरी कहानी अपना और बेटी का नाम न छापने की शर्त पर बताई। एक गरीब मुस्लिम महिला ने कैसे अपने पति से दूर रहकर और समाज से बचकर उस हिन्दू परिवार की अनाथ बच्ची को पाला ये काबिल-ए-तारीफ है। महिला ने साबित कर दिया कि आज भी इंसानियत जिंदा है जो अमीरी और गरीबी नही देखती।