नई दिल्ली। कोविड-19 संक्रमण से उबरने के बाद भी लाखों लोग लगातार थकान, सांस लेने में दिक्कत, याददाश्त कमजोर होने, दिमागी धुंध (ब्रेन फॉग) और मानसिक एकाग्रता में कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन लक्षणों को लॉन्ग कोविड के रूप में जाना जाता है, लेकिन अब तक इसके स्पष्ट कारण पूरी तरह सामने नहीं आ पाए हैं। अब एक नए वैज्ञानिक शोध ने इस रहस्यमयी बीमारी को लेकर अहम संकेत दिए हैं।
माइक्रोबायोलॉजी के 17 वरिष्ठ वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह का कहना है कि लॉन्ग कोविड के पीछे केवल कोरोना वायरस ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि शरीर में पहले से मौजूद कई छुपी हुई बीमारियां और संक्रमण भी इसकी बड़ी वजह हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस कदर कमजोर कर देता है कि निष्क्रिय अवस्था में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया दोबारा सक्रिय हो जाते हैं और लंबे समय तक चलने वाले लक्षण पैदा करते हैं।
यह महत्वपूर्ण शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका eLife में प्रकाशित हुआ है। शोध के अनुसार, दुनिया भर में अब तक करीब 40 करोड़ लोग लॉन्ग कोविड से प्रभावित हो चुके हैं, जो इसे वैश्विक स्वास्थ्य संकट का रूप देता है।
एपस्टीन-बार वायरस से मजबूत संबंध के संकेत
शोध में सबसे ठोस प्रमाण एपस्टीन-बार वायरस (EBV) को लेकर मिले हैं। यह वही वायरस है जो मोनोन्यूक्लियोसिस जैसी बीमारी का कारण बनता है और दुनिया के लगभग 95 प्रतिशत वयस्कों के शरीर में निष्क्रिय अवस्था में मौजूद रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कोविड-19 के दौरान या उसके बाद इम्यून सिस्टम कमजोर होने से यह वायरस दोबारा सक्रिय हो सकता है।
शुरुआती अध्ययनों में पाया गया कि करीब दो-तिहाई लॉन्ग कोविड मरीजों में हाल ही में EBV के सक्रिय होने के संकेत मिले। आगे की रिसर्च में इसे अत्यधिक थकान, ब्रेन फॉग और सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट जैसे लक्षणों से जोड़ा गया है।
तपेदिक और कोविड का दोतरफा खतरा
लॉन्ग कोविड से जुड़ा एक और अहम पहलू तपेदिक (टीबी) को लेकर सामने आया है। अनुमान है कि दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी के शरीर में टीबी का संक्रमण छुपी अवस्था में मौजूद है, जिसे सामान्य हालात में प्रतिरक्षा तंत्र नियंत्रित रखता है।
कुछ अध्ययनों के मुताबिक, कोविड-19 उन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रभावित करता है जो टीबी को दबाए रखती हैं, जिससे संक्रमण दोबारा सक्रिय हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह संबंध दोतरफा है—टीबी से पीड़ित लोगों में कोविड अधिक गंभीर हो सकता है और कोविड से उबरने के बाद टीबी के सक्रिय होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
‘इम्युनिटी चोरी’ का नया सिद्धांत
शोधकर्ताओं ने इस पूरी प्रक्रिया को समझाने के लिए ‘इम्युनिटी चोरी’ (Immunity Theft) की अवधारणा पेश की है। इसके अनुसार, कोविड-19 के बाद शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता इतनी कमजोर हो जाती है कि वह अन्य संक्रमणों को नियंत्रित नहीं कर पाती।
इस सिद्धांत को वैश्विक आंकड़ों से भी समर्थन मिलता है। महामारी के बाद 44 देशों में कई संक्रामक बीमारियों के मामलों में महामारी से पहले की तुलना में दस गुना तक वृद्धि दर्ज की गई है।
इलाज की उम्मीद, लेकिन अभी सतर्कता जरूरी
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर आगे के शोध यह साबित कर देते हैं कि लॉन्ग कोविड में अन्य संक्रमणों की भूमिका निर्णायक है, तो इसके इलाज के नए रास्ते खुल सकते हैं। पहले से मौजूद एंटीवायरल और एंटीबायोटिक दवाओं को संभावित समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि शोधकर्ता यह भी स्पष्ट करते हैं कि फिलहाल किसी भी अध्ययन ने यह सीधे तौर पर साबित नहीं किया है कि कोई एक खास संक्रमण ही लॉन्ग कोविड का कारण है। कारण और संबंध के बीच का फर्क अभी पूरी तरह स्पष्ट होना बाकी है।
इसके बावजूद, यह नया शोध लॉन्ग कोविड को समझने और भविष्य में इसके बेहतर इलाज की दिशा में एक अहम मोड़ माना जा रहा है।



