13 मई को केन्द्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बद्रीनाथ में चार धाम रेल लिंक के स्थलीय सर्वे का शिलान्यास किया.उत्तराखंड का पर्वतीय भूभाग रेल नेटवर्क से अछूता है.इसलिए केन्द्रीय रेल मंत्री का यह कदम,पर्वतीय क्षेत्रों में रेल नेटवर्क के विकास की उम्मीद जगाने वाला हो सकता था.लेकिन रेलवे की कार्यकुशलता(?) और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रेल नेटवर्क के विस्तार की चर्चाओं का इतिहास कोई उम्मीद जगाने से, ज्यादा संशय पैदा करता है.
अव्वल तो रेल मंत्री द्वारा सर्वे का शिलान्यास किया जाना ही बड़ी अजीबोगरीब कार्यवाही है.जिस बद्रीनाथ धाम में सुरेश प्रभु ने “सर्वे के शिलान्यास ” को अंजाम दिया,वह निकटवर्ती रेलवे स्टेशन-ऋषिकेश से लगभग तीन सौ किलोमीटर से अधिक की दूरी पर स्थित है.सर्वे का शिलान्यास भले ही पहली बार हुआ हो,लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रेलवे लाइन के सर्वे का इतिहास तो सौ साल से अधिक पुराना है.ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का पहला सर्वे 1919 में हुआ था. गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर जे.एम.क्ले ने इस रेलवे लाइन का सर्वे करवाया था.रेलवे की ही एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 1927 के लगभग भी इस रेलवे लाइन का सर्वे हुआ था. तब इस पर नैरो गेज यानि छोटी लाइन बिछाने की बात हुई थी.इसी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन को बद्रीनाथ-केदारनाथ तक विस्तारित करने की घोषणा उक्त सर्वे के शिलान्यास में निहित है.
इसी तरह कुमाऊँ मंडल में तराई के क्षेत्र टनकपुर से सूदूर पहाड़ी इलाके बागेश्वर तक रेलवे लाइन के सर्वे का इतिहास भी अंग्रेजी राज से ही शुरू होता है.कुमाऊँ विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफ़ेसर जी.एल.शाह के 5 अगस्त 2015 को अंग्रेजी अखबार-टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित बयान के अनुसार अंग्रेजों ने इस रेल लाइन की योजना 1902 में बनायी थी.एक वेबसाइट– मेरा पहाड़ फोरम.कॉम (http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/proposal-for-train-till-bageshwar/160) के अनुसार तो टनकपुर- बागेश्वर रेलवे लाइन का पहला सर्वे 1890 में,दूसरा सर्वे 1912 में और तीसरा सर्वे 1929 में हुआ था. इस तरह देखें तो भारत में ट्रेन आने के चार-पांच दशक के बाद ही पहाड़ों में रेलवे लाइन की चर्चा शुरू हो चुकी थी.लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि आजादी के सत्तर साल के बाद भी यह चर्चा बीसवीं सदी के पहले दशक में जहां शुरू हुई थी,आज भी वहीँ अटकी हुई है.अभी भी मामला सर्वे की घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ रहा है.
आजाद भारत में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रेल नेटवर्क की चर्चा 1996 में केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान हुई.इस सरकार में रेल राज्य मंत्री रहे सतपाल महाराज ने तब ऋषिकेश में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के सर्वे का उद्घाटन किया था.यानि सर्वे के शिलान्यास का जो कारनामा सुरेश प्रभु 2017 में कर रहे हैं,उसका पूर्ववर्ती संस्करण सतपाल महाराज दो दशक पहले सर्वे के उद्घाटन के रूप में प्रस्तुत कर चुके थे.सर्वे के उद्घाटन के बाद 1997-2000 के बीच इस लाइन का सर्वे हुआ.उक्त सर्वे की रिपोर्ट का आकलन था कि वर्ष 2007 तक इस रेलवे लाइन पर ट्रेन चलने लगेगी.सर्वे के उद्घाटन के दो दशक बाद इस रेल ट्रेक का केवल नाम ही नाम है. बाकी न रेल है,न ट्रेक है.इसीलिए सर्वे के शिलान्यास के परिणाम पर भी संशय की छाया है.इन दो दशकों में केवल यही बदला है कि सर्वे के उद्घाटन वाले,सर्वे का शिलान्यास करने वालों की उत्तराखंड सरकार का हिस्सा हैं.
2010 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यू.पी.ए.गठबंधन की सरकार थी.इस वर्ष तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा प्रस्तुत रेल बजट,उत्तराखंड के लिए सर्वाधिक घोषणाओं वाला रेल बजट सिद्ध हुआ.24 फरवरी 2010 को प्रस्तुत इस रेल बजट में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन को बजट में शामिल करने की घोषणा की गयी थी. इस रेल बजट में टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन के सर्वे की भी घोषणा की गयी.इसी तरह से सामाजिक रूप से वांछनीय परियोजनाओं के रूप में मैदानी क्षेत्र रामनगर से दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र चौखुटिया तक के लिए रेलवे लाइन की घोषणा की गयी थी.
इस रेल बजट की घोषणाओं के समय रेलवे लाइन को लेकर पर्वतीय क्षेत्रों में काफी उत्साह जागा था.लोगों को गढ़वाल और कुमाऊँ के पहाड़ों में ट्रेन दौड़ने की आस बंधी थी.लेकिन पहाड़ पर ट्रेन चढ़ने की उम्मीद जगाने वाली ये घोषणाएं,कोरी घोषणाएं ही बन कर रह गयी.
रेलवे लाइन के सर्वे के शिलन्यास की इस नयी कवायद के बीच एक निगाह इस पर भी डाल ली जाए कि बीते कई सालों से पहाड़ों में रेल पहुंचाने के जो सपने दिखाए जाते रहे हैं,उनकी ताजातरीन स्थिति क्या है.
टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन के सन्दर्भ में राज्य सभा में 4 दिसम्बर 2015 को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि “जहां तक टनकपुर से घाट-बागेश्वर तक रेल कनेक्टिविटी का संबंध है, इसका सर्वेक्षण पूरा हो गया है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 155 कि.मी. लंबी इस लाइन की लागत 1.16% की प्रतिफल की ऋणात्मक दर सहित 2791 करोड़ रुपए आंकी गई है. इस लाइन की अलाभप्रद प्रकृति, चालू परियोजनाओं के भारी बकाया कार्यों और निधि की तंगी के कारण रेलवे इस कार्य को शुरू करने में असमर्थ है.” यानि 2010 के रेल बजट में घोषित इस रेलवे लाइन पर काम से रेल मंत्रालय हाथ पीछे खींच चुका है.
2010 के रेल बजट में सामाजिक रूप से वांछनीय परियोजना के रूप में घोषित रामनगर-चौखुटिया रेल लाइन भी इसी गति को प्राप्त हो चुकी है.इस लाइन के बारे में 11 दिसम्बर 2015 को राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा कि “रामनगर – मोहन – मरचूला – भिकियासैन – चौखुटिया (87 किमी.) तक नई लाइन के लिए सर्वेक्षण 2011-12 में पूरा किया गया था.सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 3.03 प्रतिशत की ऋणात्मक प्रतिफल की दर सहित परियोजना की लागत 1379 करोड़ रू. आंकी गई है. परियोजना के अलाभकारी प्रकृति के होने, चालू परियोजनाओं के भारी बकाया और निधि की सीमित उपलब्धता के कारण प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया जा सका.”
इस तरह देखें तो कुमाऊँ मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों को रेल लाइन से जोड़ने की योजनायें तो रेल मंत्रालय ठन्डे बस्ते में डाल चुका है.गढ़वाल मंडल की रेल परियोजनाओं में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन अभी भी चर्चाओं में बनी हुई है.ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का उद्घाटन पूर्वर्ती कांग्रेस सरकार के जमाने में 9 नवम्बर 2011 को तत्कालीन रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी द्वारा गौचर हवाई पट्टी पर किया गया था. शिलापट पर तो यू.पी.ए. अध्यक्ष सोनिया गाँधी का नाम भी अंकित था.लेकिन वे इस कार्यक्रम शरीक नहीं हुई. रेलवे लाइन का शिलान्यास हवाई पट्टी पर किया जाना,सर्वे के शिलान्यास जैसा ही अजूबा था.ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन को अब चार धाम तक विस्तारित किये जाने की घोषणा हो चुकी है. इसके सर्वे के शिलान्यास से पहले 11 मई को रेल मंत्रलाय की तरफ से प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि रेल मंत्री ने इस लाइन को फ़ास्ट ट्रैक करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है.आंकड़े रेल मंत्री के इस दावे की भी कलई खोलते नजर आते हैं.जिस लाइन के सर्वे का शिलान्यास सुरेश प्रभु ने किया,उस लाइन की घोषणा 8 जुलाई 2014 के रेल बजट में तत्कालीन रेल मंत्री डी.सदानंद गौड़ा ने की थी.यानि जिस प्रोजेक्ट को रेल मंत्री फास्ट ट्रेक करने की बात कह रहे हैं,उसकी अब तक की गति यह है कि तीन साल में मामला घोषणा से लेकर सर्वे के शिलान्यास तक ही पहुँच सका है.
ऐसे समय में जब देश में हाई स्पीड ट्रेन और बुलेट ट्रेन की चर्चा जोरों पर है तो पहाड़ पर ट्रेन चढ़ना क्या इतना मुश्किल काम है?रेलवे के आंकड़े देखें तो लगता है कि घोषणाओं की रफ़्तार बुलेट ट्रेन वाली जरुर है.लेकिन उनके क्रियान्वयन में रेलवे कछुआ गति से ही चलता है.फरवरी 2015 में रेल मंत्रालय द्वारा जारी श्वेत पत्र बताता है कि रु.491510 करोड़ प्रारम्भिक अनुमानित लागत मूल्य की परियोजानाएं लंबित है.यह श्वेत पत्र बताता है कि वर्ष 2009-10 में 255 किलोमीटर नयी लाइन बनी,2010-11 में 709 किलोमीटर नयी रेलवे लाइन बनी 2011-12 में 725किलोमीटर नयी रेल लाइन का निर्माण हुआ.2012-13 में 501 किलोमीटर और 2013-14 में 450 किलोमीटर नई रेलवे लाइन बनी.2009 में घोषित रेलवे के विज़न 2020 में एक वर्ष में 2500 किलोमीटर रेलवे लाइन बनाने का लक्ष्य रखा गया था. रेलवे की स्थायी संसदीय समिति द्वारा लोकसभा व राज्य सभा में 10 मार्च 2017 को प्रस्तुत रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि बीते 6 वर्षों में रेल की पटरी बिछाने की औसत रफ्तार 4.3 किलोमीटर प्रति दिन रही है.जब पूरे देश में 4 किलोमीटर प्रति दिन की रफ़्तार से पटरी बिछेगी तो उससे समझा जा सकता है कि नयी लाइन बिछने को अभी कितना इन्तजार करना पड़ेगा.रेलवे के चल रहे प्रोजेक्टों पर 2015 में प्रस्तुत सी.ए.जी.की रिपोर्ट कहती है कि 7 उच्च प्राथमिकता वाले प्रोजेक्टों में काम की दर शून्य से दस प्रतिशत ही थी.उच्च प्राथमिकता वाले तीन प्रोजेक्टों पर चार सालों तक काम भी शुरू नहीं हो सका था.ये और ऐसे तमाम आंकड़े इंगित करते हैं कि रेल का पहाड़ चढ़ पाना अभी दूर की कौड़ी है.
पहाड़ पर रेल गाडी का सपना अंग्रेजों के जमाने से देखा जाता रहा है.अंग्रेजी राज से अब तक की रेल यात्रा बस सर्वे,सर्वे के उद्घाटन और सर्वे के शिलान्यास की यात्रा भर ही है.रेलवे की देश भर में परियोजना निर्माण की रफ़्तार और पहाड़ के संदर्भ में उसके सर्वेओं की अनंत कथा तो यही इंगित करती है कि पहाड़ पर रेल की डगर अभी भी बहुत कठिन है.
इंद्रेश मैखुरी