देहरादून में सरकार का विरोध करने वाले भाजपा नेता पर क्या होगी कार्यवाही

देहरादून। राजधानी में यातायात की व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए सरकार ने शहर के अवैध निर्माण अतिक्रमण को घंटाघर से आईएसबीटी तक महाअभियान चलाया। इसके लिए सरकार की तैयारी इतनी पुख्ता थी कि एक साथ छह टीमें बनाकर अलग—अलग स्थानों पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। जिसकी लोगों ने काफी प्रशंसा भी की। लेकिन भाजपा महानगर अध्यक्ष उमेश अग्रवाल ने सरकार के खिलाफ जाकर अतिक्रमण करने वाले व्यापारियों के साथ नजर आये। इसकी सरकारी महकमों के अधिकारियों और कर्मचारियों में काफी आलोचना हो रही है। इतना ही नहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता भी असहज इस मामले कुछ कहने से परहेज कर रहे हैं।
भाजपा में देहरादून महानगर अध्यक्ष को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि प्रदेश की राजधानी होने के लिहाज से सरकार के सारे कामकाज यहीं संचालित होते हैं। अगर पार्टी का महानगर अध्यक्ष ही सरकार के फैसलों का विरोध करने सड़क पर उतर जाये तो विरोधियों को सरकार की आलोचना करने का मौका मिल जाता है। सरकारी महकमों के अधिकारियों के सामने भी दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वे सरकार के आदेश का पालन करें या पार्टी के नेताओ की सुने। जब पार्टी के ही नेता सरकार की खिलाफत करने लगते हैं तो कर्मचारियों को भी कई अपने कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। बहरहाल इस अभियान में अधिकारियों ने किसी नहीं सुनीं और शहर की सूरत सुधारने को डटकर अभियान चलाया।
अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कार्यकर्ताओं से लोगों की ​प्रतिक्रिया की फीडबैक भी ली। इसी बहाने महानगर अध्यक्ष के दून व्यापार मंडल के बंद के असर का भी जानकारी ली। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश अध्यक्ष की अतिक्रमण हटाओ अभियान पर पूरी नजर थी, इसके इतर जो गतिविधियों हो रही थी उनका संज्ञान ले रहे थे।
अब सवाल यह है कि भाजपा सबसे अनुशासित कार्यकर्ताओं वाली मानी जाती है। लेकिन जब नेता ही पार्टी के अनुशासन को ताक रख अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर जाये तो पार्टी क्या ऐसे नेताओं पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी।

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