स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने में डबल इंजन का निकला दम

जहा एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखण्ड की जनता से डबल इंजन देने की अपील की थी और जनता ने भी भरोसा करके डबल इंजन दिया। पर इस इंजन को चलाने वाले सूबे के मुखिया इसे पहाड़ तो क्या मैदानी छेत्रो में भी नही चढ़ा पा रहे है। जनता के अनुसार उत्तरखण्ड के इंजन के पीछे लगे डब्बो से एम्बुलेंस जैसी सुविधाएं निकलने की उम्मीद थी तो वहां से शराब की मोबाइल वेन निकली और आगे न जाने क्या क्या निकलेगा। इसका एक उदाहरण प्रदेश भर में फैली बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं है। जो भाजपा सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है।

वर्तमान में भाजपा सरकार में प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओ के बारे में आये दिन समाचार प्रकाशित होने के बाद भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कान में जूं तक नही रेंग रही। आलम ये है पर्वतीय छेत्रो के साथ ही मैदानी छेत्रो में भी अस्पताल खुद बीमार हो चुके है डॉक्टरों के तबादले तो कर दिए गए पर इनके स्थान पर डॉक्टर अब तक नही भेजे गए है इसी के चलते कल सूबे के काबीना मंत्री हरक सिंह रावत की ही विधानसभा कोटद्वार जो कि गढ़वाल की सबसे अहम विधानसभा है वही स्तिथ राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में छोटी सी बीमारी का तक इलाज न होने के कारण एक ही परिवार की दो बहनों को जान गवानी पड़ी और ये सिलसिला पूरे प्रदेश में ही जारी है। दरअसल मंगलवार को उल्टी दस्त की शिकायत होने पर उपचार के लिए कोटद्वार चिकित्सालय लायी गयी दो बहनों ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। दोनों बहनों की मौत से परिजन बिलख-बिलख कर रो रहे थे। आक्रोशित परिजनों ने चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा काटा। इस दौरान स्थिति बिगड़ती देख वहां भारी पुलिस फोर्स को तैनात किया गया।
जानकारी के अनुसार मूल रूप से बालासौड़ निवासी धर्मेद्र सिंह अपने परिवार के साथ मंगलवार सुबह उसकी 18 वर्षीय पुत्री शिवानी और 16 वर्षीय संध्या की अचानक तबियत खराब हो गई। जिसके बाद परिजनों दोनों को उपचार के लिए यहां राजकीय संयुक्त चिकित्सालय लाये। जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया। परिजनों ने बताया कि दोपहर में दोनों बहनों की तबियत फिर खराब होने पर उन्हें दोबारा अस्पताल लाया गया। जहां चिकित्सकों ने बताया कि शिवानी की मौत हो गयी है और संध्या की हालत भी गंभीर बनी हुई है। परिजनों ने बताया कि चिकित्सकों ने हायर सेंटर रैफर करने की भी बात कही। इसी दौरान संध्या ने भी दम तोड़ दिया। इसके बाद आक्रोशित परिजनों ने चिकित्सालय परिसर में जमकर हंगामा किया और सीएमएस सामन्त के साथ भी धक्का मुक्की की। स्थिति बिगड़ती देख वहां भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए अपर पुलिस अधीक्षक हरीश वर्मा, उपजिलाधिकारी राकेश चंद्र तिवारी, पुलिस क्षेत्राधिकारी जोधराम जोशी ने मौके पर पहुंचकर आक्रोशित परिजनों को समझाने का प्रयास किया लेकिन वह किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थे। आक्रोशित परिजनों ने नेशनल हाईवे नजीबाबाद-बुआखाल मार्ग पर चिकित्सालय गेट के पास जाम लगाया। परिजन एनएच से हटने को तैयार ही नहीं थे पुलिस ने बड़ी मुश्किल से समझाकर उन्हें एनएच से हटाया। परिजनों ने यहा तक कह डाला कि भाजपा सरकार को सिर्फ गाड़ी से घर घर शराब पहुचाने से ही मतलब रह गया है आम आदमी व स्वास्थ्य सेवाओं से कोई मतलब नही। इससे पूर्व उत्तराखण्ड में भाजपा साशनकाल की स्तिथी इतनी बुरी कभी नही रही थी।
उधर देहरादून में मेडिकल कालेज बन जाने के बाद दून अस्पताल का वजूद तो खत्म हो ही गया है, साथ ही मरीजों के लिए मुसीबतें पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। कभी पहाड़ों में डाक्टरों और संसाधनों के न होने की स्थिति में राजधानी का दून अस्पताल, कोरोनेशन और महिला अस्पताल ही बीमार लोगों का सहारा थे। न केवल आम, बल्कि खास लोगों के लिए भी ये अस्पताल बड़ा सहारा देते थे। बाकी जगहों पर डाक्टर भले ही न हों पर इन अस्पतालों में नामी डाक्टरों की भरमार होती थी। मगर अब तो ये भी सूने होते जा रहे हैं। अभी पिछले दिनों वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी और राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्य सुशीला बलूनी बीमार हुईं, उनके कुछ दिनों बाद लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी की तबियत बिगड़ी। दोनों ही हस्तियां राजधानी के एक प्राईवेट अस्पताल में भर्ती हुई। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र उनका हाल चाल जानने पहुंचे और दोनों की ही स्थिति गंभीर होने पर राजधानी के सबसे बड़े प्राइवेट अस्पताल मैक्स हास्पिटल में शिफ्ट कराने के निर्देश दिए।

वही श्रीनगर मेडिकल कॉलेज को सरकार न संभाल पाने के कारण उसे सेना के हाथों में सौपने की तैय्यारी में है। ये दर्शाता है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी उठाना ही नही चाहती। बल्कि सिर्फ खनन, शराब आदि पर ही ध्यान देना चाहती है जिससे उन्हें निजी फायदा पहुच सके जनता भले ही छोटी छोटी बीमारियों में अस्पतालों में दम तोड़ती रहे।

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